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शब्दयोग सत्संग
१९ जून, २०१८
अद्वैत बोधस्थल, ग्रेटर नॉएडा
गीत: ये ज़िंदगी उसी की है
ये ज़िंदगी उसी की है, जो किसी का हो गया
प्यार ही में खो गया, ये ज़िंदगी …
ये बहार, ये समा, कह रहा है प्यार कर
किसी की आरज़ू में अपने दिल को बेक़रार कर
ज़िंदगी है बेवफ़ा…
ज़िंदगी है बेवफ़ा, लूट प्यार का मज़ा
ये ज़िंदगी …
धड़क रहा है दिल तो क्या, दिल की धड़कनें ना सुन
फिर कहां ये फ़ुर्सतें, फिर कहाँ ये रात-दिन
आ रही है ये सदा…
आ रही है ये सदा, मस्तियों में झूम जा
ये ज़िंदगी …
दो दिल यहाँ न मिल सके, मिलेंगे उस जहान में
खिलेंगे हसरतों के फूल, मौत के आस्मान में
ये ज़िंदगी चली गई जो प्यार में तो क्या हुआ
ये ज़िंदगी …
सुना रही है दास्तां, शमा मेरे मज़ार की
फ़िज़ा में भी खिली रही, ये कली अनार की
इसे मज़ार मत कहो, ये महल है प्यार का
ये ज़िंदगी …
ऐ ज़िंदगी की शाम आ, तुझे गले लगाऊं मैं
तुझी में डूब जाऊं मैं
जहाँ को भूल जाऊं मैं
बस एक नज़र मेरे सनम, अल्विदा, अल्विदा
अल्विदा … अल्विदा …
अल्विदा … अल्विदा …
गीत: ये ज़िंदगी उसी की है
फ़िल्म: अनारकली (१९५३)
बोल: राजेंद्र कृष्ण
संगीतकार: लता मंगेशकर
संगीत: मिलिंद दाते